तुम्हारे पास आता हूं तो सासें भीग जाती हैं,
मुहब्बत इतनी मिलती है कि आंखें भीग जाती हैं।
तबस्सुम इत्र जैसा है हंसी बरसात जैसा है,
वो जब भी बात करता है तो वातें भीग जाती हैं।
तुम्हारी याद से दिल में उजाला होने लगता है,
तुम्हें जब गुनगुनाता हूं तो रातें भीग जाती हैं।
जमी की गोद भरती है तो कुदरत भी चहकती है,
नये पत्ते की आहट से ही शाखें भीग जाती हैं।
तेरे एहसास की खुशबू हमेशा ताजा रहती है,
तेरी रहमत की वारिश से मुरादें भीग जाती हैं।
-श्री आलोक श्रीवास्तव (Alok Srivastav)
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