Friday, 15 March 2013

न वो मय न पैमाने रहे



अव न वो दिल न वो दर्द न वो दीवाने रहे
अव न वो साज न वो सुर न वो गाने रहे
साकी तू अब भी यहां किसके लिये बैठा है
अव न वो जाम न वो मय न पैमाने रहे

दुखते हुये जख्मों पे हवा कौन करे
इस हाल में जीने की दुआ कौन करे
बीमार हैं जब खुद ही हकीमानेवतन
फिर तेरे मरीजों की दवा कौन करे

नेताओं ने गांधी की कसम तक वेची
कविओं ने निराला की कलम तक वेची
मत पूछ कि इस दौर में क्या क्या न बिका
इंसानों ने आंखों की शर्म तक वेची

- पदमश्री श्री गोपाल दास नीरज 

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