छिप छिप अश्रु बहाने बालो,
मोती व्यर्थ लुटाने वालो
कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है।
सपना क्या है, नयन सेज पर
सोया हुया आंख का पानी
और टूटना है उसको ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी
गीली उमर बनाने बालो, डूबे बिना नहाने बालो
कुछ पानी के बह जाने से सावन नहीं मरा करता है।
माला विखर गई तो क्या है,
खुद ही हल हो गयी समस्या
आंसू गर नीलाम हुये तो
समझो पूरी हुई तपस्या
रूठे दिवस मनाने वालो, फटी कमीज सिलाने वाले
कुछ दीपक के वुझ जाने से आंगन नहीं मरा करता है।
खोता कुछ भी नहीं यहॉ पर
केवल जिल्द बदलती पोथी
जैसे रात उतार चॉदनी
पहने सुबह धूप की धोती
वस्त्र बदलकर आने वाले, चाल बदलकर जाने वालो
चंद खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है।
लाखों बार गगरिया फूटीं
शिकन न आयी पर पन्घट पर
लाखों वार किश्तियॉ डूबीं
चहल पहल वो ही है घट पर
तम की उमर वढाने वालो लौ की उमर घटाने वालो
लाख करे पतझड़ कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है।
लूट लिया माली ने उपवन
लूटी न लेकिन गन्ध फूल की
तूफानों तक ने छेड़ा पर
खिड़की बन्द न हुई धूल की
नफरत गले लगाने वालों सब पर धूल उड़ाने वालो
कुछ मुखड़ों की नाराजी से दर्पण नहीं मरा करता है।
—श्री गोपाल दास नीरज (Shri Gopal Das Neeraj)
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