Friday, 22 March 2013

मिले हर जख्म को मुस्कान से सीना नहीं आया


मिले हर जख्म को मुस्कान से सीना नहीं आया
अमरता चाहते थे पर जहर पीना नहीं आया
तुम्हारी और मेरी दास्तां में फर्क इतना है
मुझे मरना नहीं आया तुम्हें जीना नहीं आया

वहुत विखरा बहुत टूटा थपेड़े सह नहीं पाया
हवाओं के इशारों पर मगर में बह नहीं पाया
अधूरा अनसुना ही रह गया पर प्यार का किस्सा
कभी तुम सुन नहीं पाई कभी में कह नहीं पाया

तुम्हारा ख्वाव जैसे गम को अपनाने से डरता है
हमारी आंख का आंसू खुशी पाने से डरता है
अजब है लत्फ ए गम भी जो मेरा दिल अभी कल तक
तेरे जाने से डरता था कि अब आने से डरता है

- डा0 कुमार विश्‍वास (Dr. Kumar Viswas)

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