Saturday, 16 March 2013

Rahat Indori Gajal Part 4


इश्क में जीतके आने के लिये काफी हूं
में निहत्था ही जमाने के लिये काफी हू

मेरी हकीकत को मेरी खाफ समझने वाले
में तेरी नींद उड़ाने के लिये काफी हूं

मेरे बच्चों मुझे दिल खोल के तुम खर्च करो
में अकेला ही कमाने के लिये काफी हूं

एक अखवार हूं औकात ही क्या मेरी
मगर शहर में आग लगाने के लिये काफी हूं

— साभार राहत इन्दौरी साहब

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