Wednesday 27 February 2013

बस मुझ पर एहसान तुम्हारा हो जाये (Bas Mugh Par Ahsaan Tumhara ho jaye)


कि तुम सुमनों की कोमलता, कि तुम हिरनी की चंचलता
कि तुम कलियों की तरूणाईत्, तुम तुलसी की चौपाई
कि प्रिय मेरा तन मन ध्यान तुम्हारा हो जाये—2
बस मुझ पर एहसान तुम्हारा हो जाये, कि तुम सुमनों की कोमलता .........

नयन तुम्हारे नयन नहीं है नेह निम्ंत्रण हैं,
अधर नहीं सौन्दर्य सुधा का सहज समर्पण हैं
जाने किस के कुशल करों के तुम्हें तराशा है,
रूप तुम्हारा कोहिनूर है देह बताशा है
तभी तो वो चन्द्रकिरण अलबेली, भटको मत निपट अकेली
जग की अदभुत है लीला, हर पंथ बड़ा पथरीला
फिर भी जीवन पथ आसान तुम्हारा हो जाये
बस मुझ पर एहसान तुम्हारा हो जाये, कि तुम सुमनों की कोमलता .........

गौर छंटा के श्याम घटा के दृश्य मनोहर है,
चपल चंचला तुम पर मेरे प्राण न्यौछावर हैं
तुम्हें भला क्या दूं जब सब कुछ स्वयं तुम्हारा हो,
तुम्हीं प्यास हो तुम्हीं तृप्ति हो तुम जलधारा हो
सुनो तो फिर वेमन की इन्छायें, चिर ग्वारीय अभिलाषायें
सब सुख दुख दर्द पुराने, रेशम से सपन सुहाने
कि मेरा यह सारा अभिमान तुम्हारा हो जाये
बस मुझ पर एहसान तुम्हारा हो जाये, कि तुम सुमनों की कोमलता .........

—श्रंगार रस कवि श्री देवल आशीष (Deval Ashish)

Monday 25 February 2013

मुक्तक भाग 2 (Muktak Part 2)



बतायें क्या हमें किन किन सहारों ने सताया है,
नदी तो कुछ नहीं बोली किनारों ने सताया हैे
सला से शूल मेरी राह से खुद हट गये लेकिन,
मुझे तो हर घड़ी हर पल बहारों ने सताया है।

किसी के दिल की मायूसी जहॉ से होके गुजरी है,
हमारी सारी चालाकी वहीं पे खो के गुजरी है
तुम्हारी और हमारी रात में वस फर्क इतना है,
तुम्हारी सो के गुजरी है हमारी रो के गुजरी है

अगर दिल ही मुअज्जन हो सदायें काम आती हैं,
समन्दर में सभी माफिक हवायें काम आती हैं
मुझे आराम है ये दोस्तों की मेहरवानी है,
दुआयें साथ हों तो सब दवायें काम आतीं है।

तुम्हीं पे मरता है ये दिल अदावत क्यों नहीं करता,
कई जन्मों से बंदी है वगावत क्यों नहीं करता
कभी तुमसे थी जो वो ही शिकायत है जमाने से,
मेरी तारीफ करता है मुहब्बत क्यों नही करता

—डा0 कुमार विश्वास (Dr. Kumar Vishwas)

मुक्तक भाग 1 (Muktak Part 1)


पुकारे आंख में चढ कर दुखों को खूं समझता है,
अंधेरा किस को कहते हैं यह वस जुगनूं समझता है
हमें तो चॉद तारों में भी तेरा रूप दिखता है,
मुहम्मत में नुमाइश को अदायें तू समझता है।

मेरा प्रतिमान आंसू में भिगो कर गढ लिया होता
अंकिचन पांव तब आगे तुम्हारा वढ लिया होता
मेरी आंखों में भी अंकित समर्पण की रिचायें थी
उन्हें कुछ अर्थ मिल जाता जो तुमने पढ लिया होता

जहॉ हर दिन सिसकना है जहॉ हर रात गाना है
हमारी जिन्दगी भी एक तफायफ का घराना है
बहुत मजबूर होकर गीत रोटी के लिखे मेंने
तुम्हारी याद का क्या है उसे तो रोज आना है।

कहीं पर जग लिये तुम बिन,कहीं पर सो लिये तुम बिन,
भरी महफिल में भी अक्सर अकेले हो लिये तुम बिन
ये पिछले चन्द बर्षो की कमाई साथ है मेरे,
कभी तो हंस लिये तुम बिन कभी फिर रो लिये तुम बिन

-डा0 कुमार विश्वास (Dr. Kumar Vishwas)

कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है(Koi deewana kahta hai koi pagal samghta hai)


कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है,
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है
में तुझसे दूर कैसा हूं तू मुझसे दूर कैसी है,
ये मेरा दिल समझता है या तेरा दिल समझता है


मुहब्ब्त एक एहसासों की पावन सी कहानी है,
कभी कबीरा दिवाना ​था कभी मीरा दीवानी है
यहॉ सब लोग कहते हैं मेरी आंखों में आंसू है,
जो तू समझे तो मोती है जो ना समझे तो पानी है


बदलने को तो इन आंखों के मंजर कम नहीं बदले,
तुम्हारी याद के मौसम हमारे गम नहीं बदले
तुम अगले जन्म में हमसे मिलोगी तब तो मानोगी,
जमाने और सदी की इस बदल में हम नहीं बदले


बस्ती बस्ती घोर उदासी पर्वत पर्वत खालीपन,
मन हीरा बेमोल लुट गया रोता घिस घिस री तातन चन्दन
इस धरती से उस अम्बर तक दो ही चीज गजब की हैं,
एक तो तेरा भोलापन है एक मेरा दीवानापन

-डा0 कुमार विश्वास(Dr. Kumar Vishwas)



में भी हूं और तू भी है (Main Bhi hoon aur tu bhi hai)


इस उ्ड़ान पर अब शर्मिन्दा में भी हूं और तू भी है,
आसमान से गिरा परिन्दा में भी हूं और तू भी है
छूट गयी रास्ते में जीने मरने की सारी कस्में,
अपने अपने हाल में जिन्दा में भी हूं और तू भी है
खुशहाली में एक बदहाली में भी हूं और तू भी है,
हर निगाह पर एक सवाली में भी हूं और तू भी है
दुनिया कुछ भी अर्थ लगाये हम दोंनों को मालूम है,
भरे भरे पर खाली खाली में भी हूं और तू भी है

-डा0 कुमार विश्वास (Dr. Kumar Vishwas)

में तुम्हें ढूंढने स्वर्ग के द्वार तक (Main Tumhain Dhudne swarg ke dwar tak)


में तुम्हें ढूंढने स्वर्ग के द्वार तकरोज आता रहा रोज जाता रहा,
तुम गजल बन गयीं गीत में ढल गयी मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा

जिन्दगी के सभी रास्ते एक थे सबकी मंजिल तुम्हारे चयन तक रही,
अप्रकाशित रह पीर के उपनिषद मन की गोपन कथायें नयन तक रहीं,
प्राण के पृष्ठ पर प्रीत की अल्पना तुम मिटाती रही में बनाता रहा
में तुम्हें ढूंढने स्वर्ग के द्वार तकरोज आता रहा रोज जाता रहा..........

एक खामोश हलचल बनीं जिन्दगी गहरा ठहरा हुया जल बनी जिन्दगी,
तुम बिना जैसे महलों में बीता हुया उर्मिला का कोई पल बनी जिन्दगी,
दृष्टि आकाश में आश का दिया तुम बुझाती रहीं में जलाता रहा
में तुम्हें ढूंढने स्वर्ग के द्वार तकरोज आता रहा रोज जाता रहा.........

तुम चली तो गई मन अकेला हुया सारी सुध्यिों का पुरजोर मेला हुया,
जब भी लौटी नई खुशबुयों में सजी मन भी बेला हुया तन भी बेला हुया
व्यर्थ की बात पर खुद के आघात पर रूठती तुम रहीं में मनाता रहा
में तुम्हें ढूंढने स्वर्ग के द्वार तकरोज आता रहा रोज जाता रहा.........

तुम गजल बन गयीं गीत में ढल गयी मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा...

-डा0 कुमार विश्वास (Dr. Kumar Vishwas)

Saturday 2 February 2013

राधा कृष्ण कविता (Radha Krishn Kavita by Bhai Deval Ashish)


कि विश्व को मोहमयी महिमा के असंख्य स्वरूप दिखा गया कान्हां,
सारथी तो कभी प्रेमी बना तो गुरू धर्म निभा गया कान्हां
रूप विराट धरा तो धरा तो धराहर लोक पे छा गया कान्हां
रूप किया इतना लघु तो यशोदा की गोद में आ गया कान्हां
चोरी छुपे चढ़ बैठा अटारी पे चोरी से माखन खा गया कान्हां
गोपियों के कभी चीर चुराये कभी मटकी चटका गया कान्हां
खाग था घोर बड़ा चितचोर कि चोरी में नाम कमा गया कान्हां
मीरा की रैन की नैन की नींद कि राधा का चैन चुरा गया कान्हां
कि राधा ने त्याग का पंथ बुहारा तो पंथ पर फूल विछा गया कान्हां
राधा ने प्रेम की आन निभायी तो आन का मान वढ़ा गया कान्हां
कान्हां के तेज को भा गयी राधा तो राधा के रूप को भा गया कान्हां
कान्हां को कान्हां बना गयी राधा तो राधा को राधा बना गया कान्हां

कान्हां को कान्हां बना गयी राधा तो ......... राधा को राधा बना गया कान्हां

गोपियॉ गोकुल में ​थी अनेक परन्तु गोपाल को भा गयी राधा
बॉध के पाश में नाग नथैया को काम विजेता बना गयी राधा
कि काम विजेता को प्रेम प्रणेता को प्रेम पीयूष पिला गयी राधा
विश्व को नाच नचाता है जो उस श्याम को नाच नचा गयी राधा
त्यागियों में अनुरागियों में बड़भागी की नाम लिखा गयी राधा
रंग में कान्हां के ऐसी रंगी रंग कान्हां के रंग नहा गयी राधा
प्रेम है भक्ति से बढ़कर ये बात सभी को सिखा गयी राधा
संत महंत तो ध्याया किये और माखनचोर को पा गयी राधा
ब्याही ना श्याम के संग न द्वारिका या मथुरा मिथला गयी राधा
पायी न रूकमणी साधन बैभव सम्पदा को ठुकरा गयी राधा
किन्तु उपाधि और मान गोपाल की रानियों से वढ़ पा गयी राधा
ज्ञानी बड़ी अभिमानी बड़ी पटरानी को पानी पिला गयी राधा
हार के श्याम को जीत गयी अनुराग का अर्थ् बता गयी राधा
पीर पे पीर सहीं पर प्यार को शाश्वत कीर्ति दिला गयी राधा
कान्हां को पा सकती ​थी प्रिया पर प्रीत की रीत निभा गयी राधा
कृष्ण ने लाख कहा पर संग में ना गयी तो फिर ना गयी राधा

कृष्ण ने लाख कहा पर संग में ना गयी......तो फिर ना गयी राधा .......

— भाई श्री देवल आशीष (Deval Ashish)