Sunday 27 January 2013

हार गया तन मन पुकार कर तुम्हें


हार गया तन मन पुकार कर तुम्हें,
कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें...........हार गया तन मन रे हार गया रे

जिस पल हल्दी लेपी होगी तन पर मॉ ने,
जिस पल सखियों ने सौंपी होंगी सौगातें
ढोलकी की थापो में घुघरूं की रूनझुन में,
घुलकर फैली होंगी घर में प्यारी बातें
उस पल मीठी सी धुन, सूने कमरे में सुन
रोये मन चौसर पर हार कर तुम्हें
कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें...........हार गया तन मन रे हार गया रे

कल तक जो हमको तुमको मिलबा देती थी
उन सखियों के प्रश्नों ने टोका तो होगा
साजन की अंजुरि पर अंजुरि कापीं होगी
मेरी सुधियों ने रस्ता रोका तो होगा
उस पल सोचा मन में आगे अब जीवन में
जी लेंगे हंस कर विसार कर तुम्हें
कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें...........हार गया तन मन रे हार गया रे

कल तक जिन गीतों को तुम अपना कहती थीं
अखबारों में पढ़ कर कैसा लगता होगा
सावन की रातों में साजन की बाहों में
तन तो सोता होगा पर मन जगता होगा
उस पल के जीन में आंसू पी लेने में
मरते हैं मन ही मन मार कर तुम्हें
कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें...........हार गया तन मन रे हार गया रे

—डॉ0 कुमार विश्वास (Dr. Kumar Viswash)

Friday 25 January 2013

एक बार जीवन में प्यार कर लो प्रिये..


लगती हो रात में प्रभात की किरन सी
किरन से कोमल कपास की छुवन सी
छुवन सी लगती हो किसी लोकगीत की
लोकगीत जिस में बसी हो गन्ध प्रीत की
तो प्रीत को नमन एक बार कर लो प्रिये

एक बार जीवन में प्यार कर लो प्रिये.................

प्यार ठुकरा के मत भटको विकल सी
विकल हृदय में मचा दो हलचल सी
हलचल प्रीत की मचा दो एक पल को
एक पल में ही खिल जाओगी कमल ​सी
प्यार के सलोने पंख बॉध लो सपन में
सपन को सजने दो चंचल नयन में
नयन झुका के अपना लो किसी नाम को
किसी प्रिय नाम को बसा लो तन मन में
तो मन पे किसी के अधिकार कर लो प्रिये

एक बार जीवन में प्यार कर लो प्रिये .................

प्यार है पवित्रपुंज प्यार पुन्यधाम है
पुण्यधाम जिसमें कि राधिका है श्याम है
श्याम की मुरलिया ही हर गूंज प्यार है
प्यार कर्म, प्यार धर्म, प्यार प्रभु नाम है
प्यार एक प्यास, प्यार अमृत का ताल है
ताल में नहाये हुये चन्द्रमा की चाल है
चाल बन्नवारियों हिरनियों की प्यार है
प्यार देव मन्दिर की आरती का थाल है
तो थाल आरती का है विचार कर लो प्रिये

एक बार जीवन में प्यार कर लो प्रिये .................

प्यार की शरण जाओगी तो तर जाओगी
जाओगी नहीं तो आयु भर पक्षताओगी
पक्षताओगी जो किया आप मान रूप का
रंग रूप यौवन दुबारा नहीं पाओगी।
युगों की जानी अन्जानी पल भर की
अन्जानी जग की कहानी पल भर की
वस पल भर की कहानी इस रूप की
रूप पल भर का जवानी पल भर की
तो अपनी जवानी का श्रंगार कर लो प्रिये

एक बार जीवन में प्यार कर लो प्रिये ................


— श्री देवल आशिष श्रंगार कवि

पूनम के चन्द्रमा की भांति मुख पर चमक


पूनम के चन्द्रमा की भांति मुख पर चमक,
ज्योतसना भी गोरा रंग देख के लजाई है।
सावन के मेघों के समान काली केश राशि,
आंखों में अपार सिन्धु सम गहराई है।
कमल से कोमल गुलाबी अधरों के वीच,
चुपके से मृदु मुस्कान इठलाई है।
बन के उड़े चकोर मन मोर उसी ओर,
चित चोर जब से वह उर में समाई है।

—श्री देवल आशीष जी, कवि श्रंगार

Tuesday 22 January 2013

अल्हड़ अबोध आयु पाकर दिवाकर सा, रूप काम तन रत नारी लगने लगी


अल्हड़ अबोध आयु पाकर दिवाकर सा, रूप काम तन रत नारी लगने लगी

वॉकुरी की धार सम तीखे नयनों की कोर, आंज कर काजर कटारी लगने लगी

देख कर कंचन समान कमनीय काया, काम को भी कामना कुमारी लगने लगी

यौवन का वोझ इतना वढ़ा कि देह पर, ओढ़नी भी रेशम की भारी लगने लगी


मुखड़ा है जैसे पूर्णिमा के चन्द्रमा की छवि, देहदृष्टि जैसे पारिजात है कसम से

चंचल हंसी में मीठी तान की सी कोयल की, बानी में सुरों की बरसात है कसम से

घोर कालिमा से काले काले—काले कुन्तल हैं, काले केश हैं कि काली रात है कसम से

गोरे रंग से भी गोरी गोरी—गोरी इतनी की, तुलना में गोरा रंग मात है कसम से


झूमर बजी झनननन् कंगन बजे खननन् किनन् किनन् मोतियों के हार बजने लगे

कोमल चरण जो चले तो गन्ध चूम चूम झूमते कनेर कचनार बजने लगे

प्रेती पातकों की चेतना में घन्टियों के स्वर, रूपसी का देश के श्रंगार बजने लगे

नूपुर उधर बार—बार बजने लगे, तो इधर दिलों के तार—तार बजने लगे — 2


— श्रंगार रस कवि श्री देवल आशीष

कि प्यार के बिना भी उम्र काट लेंगे आप किन्तु


कि प्यार के बिना भी उम्र काट लेंगे आप किन्तु
कहीं तो अधूरी जिन्दगानी रह जायेगी
यानी रह जायेगी न मन में तरंग
नाहीं देह पर नेह की निशानी रह जायेगी
रह जायेगी तो वस नाम की नहीं तो ​फिर
और किस काम की जवानी रह जायेगी
रंग जो ना ढंग से उमंग के चढेंगे तो
कबीर सी चन्दरिया पुरानी रह जायेगी

— कवि देवल आशीष

हमने तो बाजी प्यार की हारी ही नहीं है


हमने तो बाजी प्यार की हारी ही नहीं है
जो चॅूंके निशाना वो शिकारी ही नहीं है
कमरे में इसे तू ही बता कैसे सजायें
तस्वीर तेरी दिल से उतारी ही नहीं है।

— कवि देवल आशीष

उलझ के ऐसे मुहब्बत का फलसफा रह जाये



उलझ के ऐसे मुहब्बत का फलसफा रह जाये,
ना कुछ भी ख्वावो हकीकत में फॉसला रह जाये
वहॉ से देखा है तुझको जहॉ से तू खुद भी
जो अपने आपको देखे तो देखता रह जाये।

— कवि देवल आशीष