कि तुम सुमनों की कोमलता, कि तुम हिरनी की चंचलता
कि तुम कलियों की तरूणाई, कि तुम तुलसी की चौपाई -- २
कि प्रिय मेरा तन मन ध्यान तुम्हारा हो जाये, मेरा तन मन ध्यान तुम्हारा हो जाये
बस मुझ पर एहसान तुम्हारा हो जाये --- कि तुम सुमनों की कोमलता
नयन तुम्हारे नयन नहीं है नेह निमन्ञण है,
अधर नहीं सौन्दर्य सुधा का सहज समपर्ण है
जाने किस के कुशल करों ने तुम्हें तराशा है
रूप तुम्हारा कोहिनूर है देह वताशा है
तभी तो वो चन्द्र किरन अलवेली भटको मत निपट अकेली
जग की अदभुत है लीला हर पंथ वडा पथरीला
फिर भी जीवन पथ आसाना तुम्हारा हो जाये
बस मुझ पर एहसान तुम्हारा हो जाये --- कि तुम सुमनों की कोमलता
गौर छंटा के श्याम घटा के द़श्य मनोहर हैं,
चपल चंचला तुम पर मेरे प्राण न्यौछावर हैं
तुम्हें भला क्या दूं जब सब कुछ स्वंय तुम्हारा हो
तुम्हीं प्यास हो तुम्हीं त़़प्ति हो तुम जलधारा हो
सुनो तो फिर वेमन की इच्छायें, चिर ग्वारीय अभिलाषायें
सब सुख दुख दर्द पुराने रेशम से सपन सुहाने
मेरा ये सारा संसार तुम्हारा हो जाये
बस मुझ पर एहसान तुम्हारा हो जाये --- कि तुम सुमनों की कोमलता
--श्री श्रंगार रस कवि भाई देवल आशीष (Deval Ashish)
कि तुम कलियों की तरूणाई, कि तुम तुलसी की चौपाई -- २
कि प्रिय मेरा तन मन ध्यान तुम्हारा हो जाये, मेरा तन मन ध्यान तुम्हारा हो जाये
बस मुझ पर एहसान तुम्हारा हो जाये --- कि तुम सुमनों की कोमलता
नयन तुम्हारे नयन नहीं है नेह निमन्ञण है,
अधर नहीं सौन्दर्य सुधा का सहज समपर्ण है
जाने किस के कुशल करों ने तुम्हें तराशा है
रूप तुम्हारा कोहिनूर है देह वताशा है
तभी तो वो चन्द्र किरन अलवेली भटको मत निपट अकेली
जग की अदभुत है लीला हर पंथ वडा पथरीला
फिर भी जीवन पथ आसाना तुम्हारा हो जाये
बस मुझ पर एहसान तुम्हारा हो जाये --- कि तुम सुमनों की कोमलता
गौर छंटा के श्याम घटा के द़श्य मनोहर हैं,
चपल चंचला तुम पर मेरे प्राण न्यौछावर हैं
तुम्हें भला क्या दूं जब सब कुछ स्वंय तुम्हारा हो
तुम्हीं प्यास हो तुम्हीं त़़प्ति हो तुम जलधारा हो
सुनो तो फिर वेमन की इच्छायें, चिर ग्वारीय अभिलाषायें
सब सुख दुख दर्द पुराने रेशम से सपन सुहाने
मेरा ये सारा संसार तुम्हारा हो जाये
बस मुझ पर एहसान तुम्हारा हो जाये --- कि तुम सुमनों की कोमलता
--श्री श्रंगार रस कवि भाई देवल आशीष (Deval Ashish)
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