जो हममें तुममें हुई मुहब्बत
तो देखो कैसा हुया उजाला
वो खुशबूओं ने चमन संभाला
वो मस्जिदों में खिला तब्स्सुम
वो मुस्कराया है फिर शिवालाय
जो हममें तुममें हुई मुहब्बत................
जो हममें तुममें हुई मुहब्बत
तो लव गुलाबों के फिर से महके
नगर शबाबों के फिर से महके
किसी ने रक्खा है फूल फिर से
वरख्त किताबों के फिर से महके
जो हममें तुममें हुई मुहब्बत.....................
मुहब्बतों की दुकां नहीं है
वतन नहीं है मकां नहीं है
कदम का मीलों निशां नहीं है
मगर बता ये कहां नहीं हैं
कहीं पर गीता कुरान है ये
कहीं पर पूजा अजान है ये
सदाकतों की जुबान है ये
खुला खुला आसमान है ये
तरक्कियों का सामाज जागा
कि बालियों में अनाज जागा
कबुल होने लगी हैं मन्नत
धरा को तकने लगी है जन्नत
जो हममें तुममें हुई मुहब्बत................
-आलोक श्रीवास्तव (Alok Srivastav)
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