प्रिय तुम्हारी सुधि को मेंने यूं भी अक्सर झूम लिया
तुम पर गीत लिखा फिर उसका अक्षर अक्षर चूम लिया
में क्या जानूं मन्दिर मस्जिद गिरजा या गुरूद्वारा
जिन पर पहली बार लिखा था अल्हण रूप तुम्हारा
मेंने उन पावन राहों का पत्थर पत्थर चूम लिया
प्रिय तुम्हारी सुधि को मेंने यूं भी अक्सर झूम लिया........तुम पर गीत
हम तुम कितनी दूर धरा से नभ की जितनी दूरी
फिर भी हमने साथ मिलन की पल में कर ली पुरी
मेंने धरती को दुलराया तुमने अम्बर चूम लिया
प्रिय तुम्हारी सुधि को मेंने यूं भी अक्सर झूम लिया..........तुम पर गीत
प्रियतम सुधि की गंध तुम्हारी मेंने चूमी ऐसे
चरण अहिल्या ने रघुवर के चूम लिये थे जैसे
जैसे लकडी की मुरली ने मोहन का स्वर चूम लिया
प्रिय तुम्हारी सुधि को मेंने यूं भी अक्सर झूम लिया........तुम पर गीत
— श्री देवल आशीष श्रंगार रस कवि (Deval Ashish)
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