में तुम्हें ढूंढने स्वर्ग के द्वार तकरोज आता रहा रोज जाता रहा,
तुम गजल बन गयीं गीत में ढल गयी मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा
जिन्दगी के सभी रास्ते एक थे सबकी मंजिल तुम्हारे चयन तक रही,
अप्रकाशित रह पीर के उपनिषद मन की गोपन कथायें नयन तक रहीं,
प्राण के पृष्ठ पर प्रीत की अल्पना तुम मिटाती रही में बनाता रहा
में तुम्हें ढूंढने स्वर्ग के द्वार तकरोज आता रहा रोज जाता रहा..........
एक खामोश हलचल बनीं जिन्दगी गहरा ठहरा हुया जल बनी जिन्दगी,
तुम बिना जैसे महलों में बीता हुया उर्मिला का कोई पल बनी जिन्दगी,
दृष्टि आकाश में आश का दिया तुम बुझाती रहीं में जलाता रहा
में तुम्हें ढूंढने स्वर्ग के द्वार तकरोज आता रहा रोज जाता रहा.........
तुम चली तो गई मन अकेला हुया सारी सुध्यिों का पुरजोर मेला हुया,
जब भी लौटी नई खुशबुयों में सजी मन भी बेला हुया तन भी बेला हुया
व्यर्थ की बात पर खुद के आघात पर रूठती तुम रहीं में मनाता रहा
में तुम्हें ढूंढने स्वर्ग के द्वार तकरोज आता रहा रोज जाता रहा.........
तुम गजल बन गयीं गीत में ढल गयी मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा...
-डा0 कुमार विश्वास (Dr. Kumar Vishwas)
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 05 जून 2021 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !