Monday, 25 February 2013

कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है(Koi deewana kahta hai koi pagal samghta hai)


कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है,
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है
में तुझसे दूर कैसा हूं तू मुझसे दूर कैसी है,
ये मेरा दिल समझता है या तेरा दिल समझता है


मुहब्ब्त एक एहसासों की पावन सी कहानी है,
कभी कबीरा दिवाना ​था कभी मीरा दीवानी है
यहॉ सब लोग कहते हैं मेरी आंखों में आंसू है,
जो तू समझे तो मोती है जो ना समझे तो पानी है


बदलने को तो इन आंखों के मंजर कम नहीं बदले,
तुम्हारी याद के मौसम हमारे गम नहीं बदले
तुम अगले जन्म में हमसे मिलोगी तब तो मानोगी,
जमाने और सदी की इस बदल में हम नहीं बदले


बस्ती बस्ती घोर उदासी पर्वत पर्वत खालीपन,
मन हीरा बेमोल लुट गया रोता घिस घिस री तातन चन्दन
इस धरती से उस अम्बर तक दो ही चीज गजब की हैं,
एक तो तेरा भोलापन है एक मेरा दीवानापन

-डा0 कुमार विश्वास(Dr. Kumar Vishwas)



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