Monday, 25 February 2013

मुक्तक भाग 2 (Muktak Part 2)



बतायें क्या हमें किन किन सहारों ने सताया है,
नदी तो कुछ नहीं बोली किनारों ने सताया हैे
सला से शूल मेरी राह से खुद हट गये लेकिन,
मुझे तो हर घड़ी हर पल बहारों ने सताया है।

किसी के दिल की मायूसी जहॉ से होके गुजरी है,
हमारी सारी चालाकी वहीं पे खो के गुजरी है
तुम्हारी और हमारी रात में वस फर्क इतना है,
तुम्हारी सो के गुजरी है हमारी रो के गुजरी है

अगर दिल ही मुअज्जन हो सदायें काम आती हैं,
समन्दर में सभी माफिक हवायें काम आती हैं
मुझे आराम है ये दोस्तों की मेहरवानी है,
दुआयें साथ हों तो सब दवायें काम आतीं है।

तुम्हीं पे मरता है ये दिल अदावत क्यों नहीं करता,
कई जन्मों से बंदी है वगावत क्यों नहीं करता
कभी तुमसे थी जो वो ही शिकायत है जमाने से,
मेरी तारीफ करता है मुहब्बत क्यों नही करता

—डा0 कुमार विश्वास (Dr. Kumar Vishwas)

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