कि प्यार के बिना भी उम्र काट लेंगे आप किन्तु
कहीं तो अधूरी जिन्दगानी रह जायेगी
यानी रह जायेगी न मन में तरंग
नाहीं देह पर नेह की निशानी रह जायेगी
रह जायेगी तो वस नाम की नहीं तो फिर
और किस काम की जवानी रह जायेगी
रंग जो ना ढंग से उमंग के चढेंगे तो
कबीर सी चन्दरिया पुरानी रह जायेगी
— कवि देवल आशीष
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