समन्दरों के सफर में हवा चलाता है
जहाज खुद नहीं चलते खुदा चलाता है
तुझे खबर नहीं मेले में घूमने वाले
तेरी दुकान कोई दूसरा चलाता है
ये लोग पांव नहीं जहन से अपाहिज है
उधर चलेंगे जिधर रहनुमा चलाता है
हम अपने वूढे चिरागों पे खूब इतराये
और उसको भूल गये जो हवा चलाता है
-साभार राहत इन्दौरी साहब
वो जिंदगी भर रहा मंजिल की तलाश में उसके चेहरे पर बदहवासिया` उदासी आज भी है /
ReplyDeleteजब पूछा सागर से हाल ई दिल उसका पता चला वह मछली प्यासी आज भी है //
जमाना आगे बढ़ता चला गया झूठ की सफेद चादर ओढ़े -
उसका ठहराव बता रहा है मुझे बो पगली जरासी आज भी है//
Nice
ReplyDeletebeautiful lines
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