Thursday 6 June 2013

समन्दरों के सफर में हवा चलाता है

समन्दरों के सफर में हवा चलाता है
जहाज खुद नहीं चलते खुदा चलाता है

तुझे खबर नहीं मेले में घूमने वाले
तेरी दुकान कोई दूसरा चलाता है

ये लोग पांव नहीं जहन से अपाहिज है
उधर चलेंगे जिधर रहनुमा चलाता है

हम अपने वूढे चिरागों पे खूब इतराये

और उसको भूल गये जो हवा चलाता है

-साभार राहत इन्‍दौरी साहब 

3 comments:

  1. वो जिंदगी भर रहा मंजिल की तलाश में उसके चेहरे पर बदहवासिया` उदासी आज भी है /
    जब पूछा सागर से हाल ई दिल उसका पता चला वह मछली प्यासी आज भी है //
    जमाना आगे बढ़ता चला गया झूठ की सफेद चादर ओढ़े -
    उसका ठहराव बता रहा है मुझे बो पगली जरासी आज भी है//

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