उसकी कथ्थई आंखों में है जंतर मंतर सब
चाकू बाकू छुरियां वुरियां खंजर बंजर सब
जिस दिन से तुम रूठीं मुझसे रूठे रूठे हैं
चादर वादर तकिया वकिया विस्तर विस्तर सब
मुझसे विछड़के वो भी कहां पहले जैसी है
फीके पड़ गये कपड़े वपड़े जेवर वेवर सब
आखिर में किस दिन डूबूंगा फिकरें करते हैं
दरिया वरिया कश्ती वश्ती लंगर बंगर सब
-राहत इन्दौरी साहब (Rahat Indori Sahab)
चाकू बाकू छुरियां वुरियां खंजर बंजर सब
जिस दिन से तुम रूठीं मुझसे रूठे रूठे हैं
चादर वादर तकिया वकिया विस्तर विस्तर सब
मुझसे विछड़के वो भी कहां पहले जैसी है
फीके पड़ गये कपड़े वपड़े जेवर वेवर सब
आखिर में किस दिन डूबूंगा फिकरें करते हैं
दरिया वरिया कश्ती वश्ती लंगर बंगर सब
-राहत इन्दौरी साहब (Rahat Indori Sahab)
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