बीमार को मरज की दवा देनी चाहिये
में पीना चाहता हूं पिला देनी चाहिये
अल्लाह बरकतों से नवाजेगा इश्क में
है जितनी पूंजी पास लगा देनी चाहिये
में ताज हूं तो ताज को सर पर सजायें लोग
में खाक हूं तो खाक उड़ा देनी चाहिये
कभी दिमाक कभी दिल कभी नजर में रहो
ये सब तुम्हारे ही घर है किसी भी घर में रहो
-साभार राहत इन्दौरी साहब
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