असर बुजर्गो की नैमतों का हमारे अन्दर से झॉंकता है
पुरानी नदिया का मीठा पानी नये समन्दर से झॉंकता है
ना जिस्म कोई, न दिल, न आंखें मगर ये जादूगरी तो देखो
हरेक शह में धड़क रहा है हरेक मंजर से झॉंकता है
लवों पे खामोशियों का पहरा, नजर परेशां, उदास चेहरा
तुम्हारे दिल का हरेक जज्बा तुम्हारे तेवर से झॉंकता है
गले में मॉं ने पहन रक्खे हैं महीन धागे में चन्द मोती
हमारी गर्दिश का हर एक सितारा उस एक जेवर से झॉकता है
थके पिता का उदास चेहरा उभर रहा है यूं मेरे दिल में
कि प्यासे वादल का अक्स जैसे किसी सरोवर से झॉकता है
चहक रहे चमन में पंक्षी दरख्त अंगड़ाई ले रहे है
बदल रहा है दुखों का मौसम बसन्त पतझड़ से झॉंकता है
-श्री आलोक श्रीवास्तव (Sh. Alok Shrivastav)
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