जिसके सम्मोहन में पागल धरती है आकाश भी है
एक पहेली—सी दुनिया ये गल्प भी है इतिहास भी है
चिंतन के सोपान पे चढ़ कर चॉंद—सितारे छू आये
लेकिन मन की गहराई में माटी की बू—बास भी है
इंद्रधनुष के पुल से गुजर कर इस बस्ती तक आए हैं
जहॉं भूख की धूप सलोनी चंचल है बिंदास भी है
कंकरीट के इस जंगल में फूल खिले पर गंध नहीं
स्मृतियों की घाटी में यूं कहने को मधुमास भी है
—अदम गोंडवी (Adam Gaundvi)
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