Thursday 2 January 2014

सूरज पर प्रतिबंध अनेकों

सूरज पर प्रतिबंध अनेकों
और भरोसा रातों पर
नयन हमारे सीख रहे हैं
हॅसना झूठी बातों पर

हमने जीवन की चौसर पर
दॉव लगाए ऑसू वाले
कुछ लोगों ने हर पल, हर दिन
मौके देखे बदले पाले
हम शंकित सच पा अपने,
वे मुग्‍ध स्‍वयं की घातों पर
नयन हमारे सीख रहे हैं
हॅसना झूठी बातों पर

हम तक आकर लौट गई हैं
मौसम की बेशर्म क़पाऐं
हमने सेहरे के संग बॉधी
अपनी सब मासूम खताऐं
हमने कभी न रखा स्‍वयं को
अवसर के अनुपातों पर
नयन हमारे सीख रहे हैं
हॅंसना झूठी बातों पर


-डॉ0 कुमार विश्‍वास (Dr Kumar Viswash) 

2 comments:

  1. मन को प्रभावित करने वाली कविता है।
    किन्तु मेरे मन में एक प्रश्न है कि, क्या इसी कविता को मुक्तक कहा जाता है ? या यह कोई और नाम से संबोधित किया जा सकता है ?

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