Tuesday 11 June 2013

बीमार को मरज की दवा देनी चाहिये

बीमार को मरज की दवा देनी चाहिये
में पीना चाहता हूं पिला देनी चाहिये
अल्लाह बरकतों से नवाजेगा इश्क में
है जितनी पूंजी पास लगा देनी चाहिये
में ताज हूं तो ताज को सर पर सजायें लोग

में खाक हूं तो खाक उड़ा देनी चाहिये

कभी दिमाक कभी दिल कभी नजर में रहो
ये सब तुम्हारे ही घर है किसी भी घर में रहो

-साभार राहत इन्‍दौरी साहब 

Monday 10 June 2013

चलो इश्क करें......

आज हम दोंनों को फुर्सत है चलो इश्क करें
इश्क दोंनों की जरूरत है चलो इश्क करें
इसमें नुकसान का खतरा ही नहीं रहता है
ये मुनाफे की फिजारत है चलो इश्क करे
आप हिन्दु में मुसलमान ये ईसाई वो सिख

यार छोड़ो ये सियासत है चलो इश्क करें......

जाके ये कह दे कोई शोलों से चिंगारी से
फूल इस बार खिले है बड़ी तैयारी से
वादशाहों से भी फेंके हुये सिक्के न लिये
हमने खैरात भी मांगी है तो खुददारी से 

- साभार राहत इन्‍दौरी साहब

Thursday 6 June 2013

समन्दरों के सफर में हवा चलाता है

समन्दरों के सफर में हवा चलाता है
जहाज खुद नहीं चलते खुदा चलाता है

तुझे खबर नहीं मेले में घूमने वाले
तेरी दुकान कोई दूसरा चलाता है

ये लोग पांव नहीं जहन से अपाहिज है
उधर चलेंगे जिधर रहनुमा चलाता है

हम अपने वूढे चिरागों पे खूब इतराये

और उसको भूल गये जो हवा चलाता है

-साभार राहत इन्‍दौरी साहब 

Wednesday 5 June 2013

उंगलिया यूं न सब पर उठाया करो

उंगलिया यूं न सब पर उठाया करो
खर्च करने से पहले कमाया करो

जिन्दगी क्या है खुद ही समझ जाओगे
वारिशों में पतंगें उड़ाया करो

शाम के बाद जब तुम सहर देख लो
कुछ फकीरों को खाना खिलाया करो

दोस्तों से मुलाकात के नाम पर
नीम की पत्तियों को चबाया करो

चॉद सूरज कहां अपनी मन्जिल कहां
ऐसे बेसों को मुंह मत लगाया करो

घर उसी का सही तुम भी हकदार हो
रोज आया करो रोज जाया करो

-साभार राहत इन्‍दौरी साहब 

Monday 3 June 2013

उसकी कथ्थई आंखों में है जंतर मंतर सब

उसकी कथ्थई आंखों में है जंतर मंतर सब
चाकू बाकू छुरियां वुरियां खंजर बंजर सब

जिस दिन से तुम रूठीं मुझसे रूठे रूठे हैं
चादर वादर तकिया वकिया विस्तर विस्तर सब

मुझसे विछड़के वो भी कहां पहले जैसी है
फीके पड़ गये कपड़े वपड़े जेवर वेवर सब

आखिर में किस दिन डूबूंगा फिकरें करते हैं
दरिया वरिया कश्ती वश्ती लंगर बंगर सब

-राहत इन्‍दौरी साहब (Rahat Indori Sahab)